Monday, February 1, 2010

कर्मयोगी श्रीमती उमराव जैन

महिला शिक्षा को नये अर्थ दिये हैं उन्होंने

उमराव जैन का जन्म 28 सितम्बर 1953 को जोधपुर में हुआ। वे 17 वर्ष की भी नहीं हुई थीं कि उनका विवाह हो गया। उस समय तक उमराव ने हायर सैकण्डरी की परीक्षा दी थी, रिजल्ट नहीं आया था। उमराव के पिता मुनीम का काम करते थे। पति भी यही करते थे। विवाह के अगले वर्ष बेटे तरुण का जन्म हुआ और उसके तीन वर्ष बाद बेटी लतिका का। बेटी तीन साल की हुई तो उमराव ने बीच में छूट गये पढ़ाई के क्रम को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। पति श्री घीसूलाल जैन तथा सास श्रीमती भूरी देवी ने उमराव का हौंसला बढ़ाया। वर्ष 1979 में श्रीमती उमराव ने जोधपुर विश्वविद्यालय से बी.ए. आॅनर्स में पूरे हिस्ट्री विभाग को टॉप किया। 1981 में उन्होंने एंशीएण्ट हिस्ट्री में प्रथम श्रेणी में एम. ए. की तथा हिस्ट्री डिपार्टमेण्ट में दूसरी रैंक हासिल की।

वर्ष 1982 में उनकी नियुक्ति राजकीय महाविद्यालय झालावाड़ में इतिहास के व्याख्याता पद पर हुई। 1986 तक उन्होंने सुबोध कॉलेज जयपुर, सनातन धर्म कॉलेज ब्यावर, जैसलमेर और नागौर में भी अध्यापन कार्य किया किंतु 1987 में हृदय रोग से गंभीर रूप से पीडि़त हो जाने के कारण उन्हें शिक्षण कार्य छोड़ना पड़ा। 1992 में उन्होंने हृदय की शल्य चिकित्सा करवाई। स्वस्थ होने के बाद एक बार फिर उन्होंने अपना जीवन शिक्षा को समर्पित करने का निर्णय लिया। 1994 में राजस्थान सरकार ने उन्हें लोक जुम्बिश परियोजना के तहत जालोर में खुले पहले महिला शिक्षण विहार में प्रिंसीपल के पद पर नियुक्त किया। इस संस्था में निर्धन परिवारों की 15 से 35 साल आयु की बेसहारा, विधवा अथवा परित्यक्ता महिलाओं को तीन वर्ष की अल्प अवधि में आठवीं तक की शिक्षा प्रदान कर, उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास एवं उन्हें स्वावलम्बी बनाने की परिकल्पना संजोयी गयी थी।

महिलाआsं तथा उनकी गोद के बच्चों के रहने तथा खाने की व्यवस्था महिला शिक्षण विहार में ही की गयी। दिन भर की पढ़ाई तथा अन्य गतिविधियों के साथ–साथ रात्रि सत्र का भी प्रावधान रखा गया जिसमें दिन भर के कामों की समीक्षा, आने वाले दिन में किये जाने वाले कामों का आवंटन, प्रार्थना, प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय–अंतर्राष्ट्रीय समाचारों की समीक्षा आदि कार्य किये जाते थे। रात्रि सत्र के दौरान समाज में व्याप्त कुरीतियों पर विस्तार से चर्चा की जाती थी।

श्रीमती उमराव जैन तथा उनकी सहकर्मी शिक्षिकाओं ने दिन रात परिश्रम करके, ग्रामीण एवं अशिक्षित परिवेश से आयी महिलाओं के व्यक्तित्व एवं चिंतन में आमूल चूल परिर्वतन ला दिया। कक्षा शिक्षण के साथ–साथ समूह चर्चाओं, परिचर्चाओं, पुस्तकालय गतिविधियाें, गीत–संगीत एवं शैक्षिक भ्रमणों के माध्यम से महिलाओं के व्यक्तित्व विकास के प्रयास किये गये। विहार में रहने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य एवं उनकी स्वास्थ्य शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया गया। उन्हें एक्यूप्रेशर, ध्यान, योग आदि का प्रशिक्षण दिलवाया गया। विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा नियमित रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच करवाकर उनका उपचार करवाया गया। उनके रक्त में हीमोग्लोबिन को मानक स्तर पर लाने के लिये दवायें दी गयीं। इससे महिलाओं का स्वास्थ्य भी तेजी से अच्छा होने लगा। जब शरीर और मन दोनों स्वस्थ होने लगे तो पढ़ाई समझने में आना मुश्किल काम नहीं रह गया। पढ़ाये जाने वाले प्रत्येक विषय के मूल्यांकन के लिये मासिक परीक्षाओं का प्रावधान रखा गया। जिला मुख्यालय पर कार्यरत डाइट तथा जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारंभिक) के द्वारा महिलाओं की आठवीं कक्षा की परीक्षा आयोजित करवायी जाने लगीं। पहला बैच 40 लड़कियों का था जिसने मार्च 1995 में पढ़ाई आरंभ की थी। 1995–96 से लेकर वर्ष 2003–04 तक आठवीं बोर्ड की परीक्षा में विहार का परीक्षा परिणाम सामान्यत: सौ प्रतिशत रहा।

इन उपलब्धियों के लिये श्रीमती उमराव जैन तथा उनकी सहकर्मी शिक्षिकाओं को कई बार जिला स्तर पर पुरस्कृत किया गया। इस अद्भुत संस्था को देखने के लिये आने वाले महत्वपूर्ण व्यक्तियों में राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल श्री अंशुमानसिंह, राज्य सरकार के कई मंत्री, स्वीडन की इन्टरनेशनल डिवलपमेंट ऐजेंसी की सर्वेक्षण शाखा के प्रमुख डॉ. शैल निस्ट्रॉम, इण्डियन इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर वी. एन. रेड्डी, आई. आई. एम. सी के प्रोफेसर एस. के. घोष, प्रख्यात शिक्षाविद एवं रमन मैगसेसे से पुरस्कृत अनिल बोर्डिया, द हिन्दू की विशेष संवाददाता सोमा बासु तथा यूनिसेफ के कई बड़े अधिकारी सम्मिलित हैं। राजस्थान की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल तो इस संस्था से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने राज्य सरकार से आग्रह किया कि इस तरह की संस्थायें पूरे राज्य में खोली जायें। इस विहार से पढ़–लिख कर निकली हुई महिलाएं समाज की विभिन्न संस्थाओं में जिम्मेदारी पूर्वक कार्य कर रही हैं। उनमें जीवन जीने का हौंसला है। समाज में उन्होंने सम्मानजनक स्थिति प्राप्त कर ली है। विहार से पढ़ी हुई अधिकांश महिलाएं सर्वशिक्षा अभियान के तहत सरकारी नौकरी हासिल करने में सफल रही हैं।

उमराव जैन आज भी हृदय की गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं। उम्र बढ़ने के साथ उन्हें थॉयराइड की बीमारी भी रहने लगी है किंतु उनके हौंसले पस्त नहीं हुए हैंं। बेटा तरुण कोरिया, ताइवान और चीन जैसे तेजी से आगे बढ़ते ऐशियाई देशों से आयात निर्यात का व्यापार करता है और उमराव आज भी दुनिया की चमक से दूर पश्चिमी राजस्थान के धोरों में स्थित जालोर जिले की बेसहारा, विधवा एवं परित्यक्ता बहिनों की सेवा में संलग्न हैं।

सम्पर्क– 130, श्याम नगर, गली नम्बर 3, देवनगर के सामने, पाल लिंक रोड, जोधपुर
दूरभाष – 0291 2753729, 94148 67521

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