Monday, February 15, 2010

श्रीमती उषा गर्ग

सच्चाई की राह पर चलने वाला दूसरों को भी पार लगा देता है

उषा गर्ग का जन्म 14 मई 1961 को आगरा में हुआ। उनके पिता श्री सोहनलाल सेठ कानपुर के विक्रमादित्य सनातन धर्म कॉलेज में बी. एड. के विभागाध्यक्ष थे तथा माता श्रीमती प्रेम सेठ, आगरा के प्रतिष्ठित हैडर्ड स्कूल में शिक्षिका थीं। उषा अपने माता पिता की दूसरे नम्बर की संतान हैं। उनसे बड़ी एक बहिन है तथा दो छोटे भाई हैं।उषा की स्कूली शिक्षा कानपुर के विद्यामंदिर में हुई। स्कूली शिक्षा के दौरान ही उषा ने वाद–विवाद, फैंसी ड्रेस तथा खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेना आरंभ कर दिया। उन्होंने राष्ट्रीय कैडेट कोर तथा बुलबुल स्काउट के कई कैम्पों में भाग लिया। उन्होंने एन. सी. सी. एवं बुलबुल स्काउट में ‘‘बी’’ सर्टिफिकेट भी प्राप्त किये। उषा की कॉलेज शिक्षा कानपुर के आचार्य नरेन्द्र देव महिला महाविद्यालय से हुई जहाँ से उन्होंने संस्कृत भाषा में स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित की। कॉलेज में रहते हुए वे आॅल इण्डिया क्रिकेट इण्टर यूनिवर्सिटी में फस्र्ट इलेवन में खेली। वॉलीबॉल, हैण्ड बॉल, थ्रो बॉल आदि खेलों में उषा ने नेशलन अवार्ड प्राप्त किये। इनके अतिरिक्त डिस्क थ्रो, कबड्डी आदि खेलों में भी उन्होंने कई पुरस्कार अर्जित किये। 1982 में उनका विवाह जोधपुर के प्रतिष्ठित अग्रवाल परिवार में हुआ। उनके पति श्री विमल स्वरूप गर्ग स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर में कैशियर के पद पर कार्यरत हैं। विवाह के बाद अपने श्वसुर श्री चम्पालाल गर्ग, अपनी सास श्रीमती धनवंतरी देवी तथा जेठ–जेठानी के सहयोग एवं प्रेरणा से उषा ने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया तथा समाज सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उन्होंने महिलाओं को स्वरोजगार दिलवाने के लिये नि:शुल्क प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये। इन कार्यक्रमों से कई महिलाआें ने स्वरोजगार स्थापित करने का प्रशिक्षण लेकर अपने रोजगार स्थापित किये और स्वावलम्बी बनीं। 1993 में उन्होंने घर में ही एक लघु उद्योग समानी हर्बल्स नामक एजेन्सी स्थापित की तथा विभिन्न उत्पाद बनाने आरंभ किये। उन्होंने 15 महिला सदस्यों को लेकर ‘‘एनीटाइम हैल्प सर्विस’’ नामक संस्था की स्थापना की। यह संस्था किसी भी महिला द्वारा सम्पर्क किये जाने पर उसे सहायता उपलब्ध करवाती थी।1994 में उषा ने लॉयन्स क्लब इण्टरनेशनल की सदस्यता ग्रहण की। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट सेवाएं प्रदान कीं। वे लॉयन्स क्लब इण्टरनेशनल की अध्यक्ष, क्षेत्रीय अध्यक्ष, संभागीय अध्यक्ष भी रहीं। इस संस्था के कैबीनेट एवं मल्टीपल स्तर पर शिक्षा, चिकित्सा, वृद्धावस्था सहायता, राष्ट्रीय पल्स पोलियो कार्यक्रम, नारी सशक्तिकरण, विकलांग सहायता, महिला रोजगार, बाल विवाह उन्मूलन, दहेज प्रथा उन्मूलन आदि क्षेत्रों में विशिष्ट सेवाएं प्रदान कीं। वर्ष 2008 में हुए मेहरानगढ़ दुर्ग हादसे की सूचना मिलने पर उषा गर्ग अपनी सहयोगी समाज सेविकाओं के साथ एक घण्टे के भीतर मथुरा दास माथुर हॉस्पीटल एवं महात्मा गांधी हॉस्पीटल पहुंच गयीं। तथा अपनी टीम के साथ मिलकर, घायल लोगों की सेवा सुश्रुषा में संलग्न हो गयीं। घायलों एवं उनके परिवारों के सदस्यों के लिये भोजन एवं पानी की व्यस्था का जिम्मा भी उषा एवं उनकी टीम ने अपने ऊपर ले लिया। मेहरानगढ़ हादसे में मृत व्यक्तियों के आश्रित परिवारों को रोजगार उपलब्ध करवाने में भी उषा एवं उनकी टीम पूरा सहयोग कर रही है।बालिकाओं एवं युवतियों को प्रोत्साहित करने तथा उनके व्यक्तित्व विकास के लिये भी उषा ने काफी काम किया। उन्होंने लायन्स क्लब इण्टरनेशनल के माध्यम से जोधपुर में स्थित श्रमिक विद्यापीठ, महिला पोलिटेक्निक, कमला नेहरू कॉलेज, इंजीनियरिंग गल्र्स हॉस्टल, महिला महाविद्यालय सहित कई महाविद्यालयों एवं विद्यालयों में व्यक्तित्व विकास तथा चिकित्सा से सम्बन्धित सेमीनार, विचार गोष्ठियां आदि कार्यक्रम आयोजित करवाये।समर्पण भाव से सेवा करने के लिये उषा को समाज की विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया। वर्ष 2006–07 में पूरे लॉयनेस डिस्ट्रिक्ट में उन्हें बेस्ट आॅफ द बेस्ट सर्वश्रेष्ठ अध्यक्षा का अवार्ड दिया गया। वर्ष 2007–08 में उन्हें रीजन में सर्वश्रेष्ठ अध्यक्षा का अवार्ड मिला। इसी तरह अग्रवाल समाज, माहेश्वरी समाज, जैन समाज द्वारा भी उन्हें समय–समय पर सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया। राजस्थान दिवस के अवसर पर भी उन्हें सम्मानित किया गया। वर्तमान में श्रीमती उषा गर्ग लायन्स क्लब की डायरेक्टर तथा सखी सहेली संगठन की अध्यक्ष हैं। उन्हें समाज सेवा के कार्य में अपने पूरे परिवार और मित्र मण्डली का भरपूर सहयोग मिलता है।

Monday, February 8, 2010

कर्मयोगी उमा कंवर

सादा जीवन उच्च विचार को जीवन का मूल मंत्र बनाया है उन्होंने

श्रीमती उमा कंवर का जन्म 21 मार्च 1961 को गुजरात के राजगढ़ (लेहरा) में रहने वाले परम्परागत राजपूत परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम श्री अमरसिंह सोलंकी था। परम्परागत राजपूत परिवारों में उन दिनों लड़कियों की शिक्षा पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था फिर भी उमा कंवर सौभाग्यशाली थीं कि उन्होंने आठवीं कक्षा तक की औपचारिक शिक्षा स्कूल में जाकर प्राप्त की। उन्हें पुस्तकें पढ़ने का बड़ा चाव था। उन्होंने महापुरुषों एवं राष्ट्रीय नेताओं की जीवनियों का अध्ययन किया। उन्हें महात्मा गांधी, पण्डित जवाहर लाल नेहरू, श्री लालबहादुर शास्त्री तथा श्रीमती इंदिरा गांधी के जीवन चरित्र ने विशेष रूप से प्रभावित किया। महान राष्ट्रीय नेताओं की जीवनियों को पढ़ने से श्रीमती उमा कंवर को राष्ट्रीयता की आवश्यकता एवं महत्ता का पता लगा और उन्हें अपने राष्ट्र से प्रेम करने तथा देश वासियों की सेवा करने की प्रेरणा मिली।श्रीमती उमा कंवर महात्मा गांधी की जीवनी से विशेष रूप से प्रभावित हुईं जिन्होंने देश को आजाद करवाने के लिये अपनी अच्छी खासी बैरिस्ट्री का त्याग कर दिया तथा जीवन के सारे सुख त्यागकर देश हित जेलों में रहना स्वीकार किया। गांधीजी ने निर्धनों, पिछड़ों और समाज के सबसे अंतिम छोर पर बैठे व्यक्तियों के उत्थान के लिये जो कार्यक्रम चलाये, उन्होंने भी श्रीमती उमा को विशेष रूप से प्रभावित किया। सादा जीवन और उच्च विचार का दर्शन श्रीमती उमा को इतना भाया कि उन्होंने इस विचार को अपने जीवन का मूल मंत्र बना लिया। महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चलने के संकल्प के साथ श्रीमती उमा अपने आसपास घटित होने वाली विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने लगीं। विकास संस्था के माध्यम से उन्होंने निर्धन विद्यालयी छात्रों को पुस्तकें, पोशाकें तथा सर्दियों में गरम कपड़े बांटने का काम हाथ में लिया। लक्ष्मी उद्योग के मालिक श्री भगवान सिंह परिहार एक उद्योगपति होते हुए भी जिस तरह समाज सेवा में सक्रिय रहते हैं, उन्हें देखकर श्रीमती उमा कंवर को निर्धन बच्चों की सेवा करने की प्रेरणा मिली तथा नवजीवन संस्थान में अबोध बच्चों की मदद करना भी उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। वर्ष 1982 में उमा का विवाह श्री अमरसिंह सोलंकी से हुआ। श्री सोलंकी बैंक में हैडकैशियर के पद पर कार्य करते हैंं। उमा के विवाह के बाद श्वसुर गृह में उनकी सास श्रीमती विद्या कंवर एवं ससुर श्री लालसिंह सोलंकी का निधन हो गया। इस पर श्रीमती उमा ने अपने देवरों एवं नंदों को अपने बच्चों की तरह पाला एवं पढ़ाया तथा उनके विवाह की जिम्मेदारी भी श्रीमती उमा ने अपने पति के सहयोग से बहुत अच्छी तरह से निभाई। पारिवारिक दायितवों के निर्वहन के साथ–साथ जरूरतमंदों को हॉस्पीटल में खाना पहुंचाना, कम्बल बांटना, किसी को सर्दी में ठिठुरते देखकर अपना शॉल उसे दे देना उनकी आदत में सम्मिलित रहा है। सेवा करके उन्हें असीम प्रसन्नता प्राप्त होती है। शांत स्वभाव की उमा कंवर के खुश मिजाज स्वभाव से घर व मौहल्ले में सदैव रौनक बनी रहती है। उनका मानना है कि व्यर्थ की बातों में समय खराब करने के स्थान पर मनुष्य को अपनी ऊर्जा उचित कामों और दूसरों की भलाई में लगानी चाहिये। श्रीमती उमा का अधिकांश समय लवकुश नेत्रहीन विद्यालय में बच्चों की सेवा करने में निकलता है। आप लॉयनेस क्लब के माध्यम से भी समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वर्ष 2008 में वे लॉयनेस क्लब की कोषाध्यक्ष बनीं तथा सूर्यनगरी क्लब की भी शोभा बढ़ाई। सखी सहेली संगठन तथा कांग्रेस में भी वे पूरी तरह सक्रिय हैं। वर्तमान में वे जोधपुर महिला कांगे्रस में वार्ड संख्या चार की उपाध्यक्ष हैं। उनका प्रयास रहता है कि जिस किसी भी संगठन के लिये वे कार्य करें उनके समूह अथवा टीम में एकता बनी रहे। उनका विश्वास है कि सब लोगों की सम्मिलित ऊर्जा एक साथ लगने से कार्य के परिणाम शीघ्र एवं काफी अच्छे प्राप्त होते हैं। औपचारिक शिक्षा भले ही श्रीमती उमा कंवर ने कम प्राप्त की किंतु जीवन जीने की कला कोई उनसे सीखे। वे कुकिंग, रंगोली और मेहंदी कलाओं में इतनी निपुण हैं कि देखने वाले दंग रह जायें। इन कलाओं के कारण उनकी लोकप्रियता का ग्राफ सदैव ऊंचा ही रहता है। आपके विनम्र, स्नेहशील एवं सेवाभावी स्वभाव को ससुराल में तथा हर स्थान पर प्रशंसा प्राप्त हुई। श्रीमती उमा तथा श्री अमरसिंह दम्पत्ति के दो पुत्र तथा एक पुत्री हैं। बड़ा पुत्र हेमंत एच. बी. कम्पनी में कार्यरत है। पुत्री ममता स्तातक (कला) की विद्यार्थी है तथा छोटा पुत्र देवेन्द्र अभी दसवीं कक्षा का विद्यार्थी है।श्रीमती उमा का मानना है कि ‘‘सिम्पल लिविंग और हाई थिंकिंग’’ का विचार आदमी के अपने हिसाब से तय होना चाहिये। उसके लिये कोई कृत्रिम मानदण्ड निर्धारित नहीं किये जा सकते। यदि कृत्रिम रूप से ऐसा किया गया तो उसका परिणाम बाह्य आडम्बर के रूप में प्राप्त होगा। आदमी के मन में पवित्रता का भाव उदित नहीं होगा। उनका यह भी मानना है कि यदि हम अपने आपको हर समय परिवार, समाज तथा देश की खुशहाली और समृद्धि के कार्यों में लगाये रखेंगे तो हम कभी भी नकारात्मकता की ओर नहीं मुड़ेंगे। आम आदमी के जीवन में सरसता बढ़ाने के अवसरों को भी वे हाथ से नहीं जाने देतीं। वे मंदिरों में पूजा, डाण्डिया एवं महोत्सव आदि आयोजनों में भी उत्साह से योगदान देती हैं। आज के इस चमक–दमक भरे संसार में जहाँ लोग रंग रोगन के सहारे सड़ा–गला माल भी ताजा और अच्छा दिखाने की जुगत में रहते हैं, वहीं श्रीमती उमा को झूठ, दिखावे और धोखे से सख्त नफरत है। वे अपने सम्पर्क में आने वाले बच्चों को सदैव यही समझाती हैं कि थोड़ा करो किंतु अच्छा करो। यह तभी संभव है जब मनुष्य का मन सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत पर चलने को तैयार हो।

Monday, February 1, 2010

कर्मयोगी श्रीमती उमराव जैन

महिला शिक्षा को नये अर्थ दिये हैं उन्होंने

उमराव जैन का जन्म 28 सितम्बर 1953 को जोधपुर में हुआ। वे 17 वर्ष की भी नहीं हुई थीं कि उनका विवाह हो गया। उस समय तक उमराव ने हायर सैकण्डरी की परीक्षा दी थी, रिजल्ट नहीं आया था। उमराव के पिता मुनीम का काम करते थे। पति भी यही करते थे। विवाह के अगले वर्ष बेटे तरुण का जन्म हुआ और उसके तीन वर्ष बाद बेटी लतिका का। बेटी तीन साल की हुई तो उमराव ने बीच में छूट गये पढ़ाई के क्रम को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। पति श्री घीसूलाल जैन तथा सास श्रीमती भूरी देवी ने उमराव का हौंसला बढ़ाया। वर्ष 1979 में श्रीमती उमराव ने जोधपुर विश्वविद्यालय से बी.ए. आॅनर्स में पूरे हिस्ट्री विभाग को टॉप किया। 1981 में उन्होंने एंशीएण्ट हिस्ट्री में प्रथम श्रेणी में एम. ए. की तथा हिस्ट्री डिपार्टमेण्ट में दूसरी रैंक हासिल की।

वर्ष 1982 में उनकी नियुक्ति राजकीय महाविद्यालय झालावाड़ में इतिहास के व्याख्याता पद पर हुई। 1986 तक उन्होंने सुबोध कॉलेज जयपुर, सनातन धर्म कॉलेज ब्यावर, जैसलमेर और नागौर में भी अध्यापन कार्य किया किंतु 1987 में हृदय रोग से गंभीर रूप से पीडि़त हो जाने के कारण उन्हें शिक्षण कार्य छोड़ना पड़ा। 1992 में उन्होंने हृदय की शल्य चिकित्सा करवाई। स्वस्थ होने के बाद एक बार फिर उन्होंने अपना जीवन शिक्षा को समर्पित करने का निर्णय लिया। 1994 में राजस्थान सरकार ने उन्हें लोक जुम्बिश परियोजना के तहत जालोर में खुले पहले महिला शिक्षण विहार में प्रिंसीपल के पद पर नियुक्त किया। इस संस्था में निर्धन परिवारों की 15 से 35 साल आयु की बेसहारा, विधवा अथवा परित्यक्ता महिलाओं को तीन वर्ष की अल्प अवधि में आठवीं तक की शिक्षा प्रदान कर, उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास एवं उन्हें स्वावलम्बी बनाने की परिकल्पना संजोयी गयी थी।

महिलाआsं तथा उनकी गोद के बच्चों के रहने तथा खाने की व्यवस्था महिला शिक्षण विहार में ही की गयी। दिन भर की पढ़ाई तथा अन्य गतिविधियों के साथ–साथ रात्रि सत्र का भी प्रावधान रखा गया जिसमें दिन भर के कामों की समीक्षा, आने वाले दिन में किये जाने वाले कामों का आवंटन, प्रार्थना, प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय–अंतर्राष्ट्रीय समाचारों की समीक्षा आदि कार्य किये जाते थे। रात्रि सत्र के दौरान समाज में व्याप्त कुरीतियों पर विस्तार से चर्चा की जाती थी।

श्रीमती उमराव जैन तथा उनकी सहकर्मी शिक्षिकाओं ने दिन रात परिश्रम करके, ग्रामीण एवं अशिक्षित परिवेश से आयी महिलाओं के व्यक्तित्व एवं चिंतन में आमूल चूल परिर्वतन ला दिया। कक्षा शिक्षण के साथ–साथ समूह चर्चाओं, परिचर्चाओं, पुस्तकालय गतिविधियाें, गीत–संगीत एवं शैक्षिक भ्रमणों के माध्यम से महिलाओं के व्यक्तित्व विकास के प्रयास किये गये। विहार में रहने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य एवं उनकी स्वास्थ्य शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया गया। उन्हें एक्यूप्रेशर, ध्यान, योग आदि का प्रशिक्षण दिलवाया गया। विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा नियमित रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच करवाकर उनका उपचार करवाया गया। उनके रक्त में हीमोग्लोबिन को मानक स्तर पर लाने के लिये दवायें दी गयीं। इससे महिलाओं का स्वास्थ्य भी तेजी से अच्छा होने लगा। जब शरीर और मन दोनों स्वस्थ होने लगे तो पढ़ाई समझने में आना मुश्किल काम नहीं रह गया। पढ़ाये जाने वाले प्रत्येक विषय के मूल्यांकन के लिये मासिक परीक्षाओं का प्रावधान रखा गया। जिला मुख्यालय पर कार्यरत डाइट तथा जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारंभिक) के द्वारा महिलाओं की आठवीं कक्षा की परीक्षा आयोजित करवायी जाने लगीं। पहला बैच 40 लड़कियों का था जिसने मार्च 1995 में पढ़ाई आरंभ की थी। 1995–96 से लेकर वर्ष 2003–04 तक आठवीं बोर्ड की परीक्षा में विहार का परीक्षा परिणाम सामान्यत: सौ प्रतिशत रहा।

इन उपलब्धियों के लिये श्रीमती उमराव जैन तथा उनकी सहकर्मी शिक्षिकाओं को कई बार जिला स्तर पर पुरस्कृत किया गया। इस अद्भुत संस्था को देखने के लिये आने वाले महत्वपूर्ण व्यक्तियों में राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल श्री अंशुमानसिंह, राज्य सरकार के कई मंत्री, स्वीडन की इन्टरनेशनल डिवलपमेंट ऐजेंसी की सर्वेक्षण शाखा के प्रमुख डॉ. शैल निस्ट्रॉम, इण्डियन इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर वी. एन. रेड्डी, आई. आई. एम. सी के प्रोफेसर एस. के. घोष, प्रख्यात शिक्षाविद एवं रमन मैगसेसे से पुरस्कृत अनिल बोर्डिया, द हिन्दू की विशेष संवाददाता सोमा बासु तथा यूनिसेफ के कई बड़े अधिकारी सम्मिलित हैं। राजस्थान की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल तो इस संस्था से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने राज्य सरकार से आग्रह किया कि इस तरह की संस्थायें पूरे राज्य में खोली जायें। इस विहार से पढ़–लिख कर निकली हुई महिलाएं समाज की विभिन्न संस्थाओं में जिम्मेदारी पूर्वक कार्य कर रही हैं। उनमें जीवन जीने का हौंसला है। समाज में उन्होंने सम्मानजनक स्थिति प्राप्त कर ली है। विहार से पढ़ी हुई अधिकांश महिलाएं सर्वशिक्षा अभियान के तहत सरकारी नौकरी हासिल करने में सफल रही हैं।

उमराव जैन आज भी हृदय की गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं। उम्र बढ़ने के साथ उन्हें थॉयराइड की बीमारी भी रहने लगी है किंतु उनके हौंसले पस्त नहीं हुए हैंं। बेटा तरुण कोरिया, ताइवान और चीन जैसे तेजी से आगे बढ़ते ऐशियाई देशों से आयात निर्यात का व्यापार करता है और उमराव आज भी दुनिया की चमक से दूर पश्चिमी राजस्थान के धोरों में स्थित जालोर जिले की बेसहारा, विधवा एवं परित्यक्ता बहिनों की सेवा में संलग्न हैं।

सम्पर्क– 130, श्याम नगर, गली नम्बर 3, देवनगर के सामने, पाल लिंक रोड, जोधपुर
दूरभाष – 0291 2753729, 94148 67521