Monday, February 8, 2010

कर्मयोगी उमा कंवर

सादा जीवन उच्च विचार को जीवन का मूल मंत्र बनाया है उन्होंने

श्रीमती उमा कंवर का जन्म 21 मार्च 1961 को गुजरात के राजगढ़ (लेहरा) में रहने वाले परम्परागत राजपूत परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम श्री अमरसिंह सोलंकी था। परम्परागत राजपूत परिवारों में उन दिनों लड़कियों की शिक्षा पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था फिर भी उमा कंवर सौभाग्यशाली थीं कि उन्होंने आठवीं कक्षा तक की औपचारिक शिक्षा स्कूल में जाकर प्राप्त की। उन्हें पुस्तकें पढ़ने का बड़ा चाव था। उन्होंने महापुरुषों एवं राष्ट्रीय नेताओं की जीवनियों का अध्ययन किया। उन्हें महात्मा गांधी, पण्डित जवाहर लाल नेहरू, श्री लालबहादुर शास्त्री तथा श्रीमती इंदिरा गांधी के जीवन चरित्र ने विशेष रूप से प्रभावित किया। महान राष्ट्रीय नेताओं की जीवनियों को पढ़ने से श्रीमती उमा कंवर को राष्ट्रीयता की आवश्यकता एवं महत्ता का पता लगा और उन्हें अपने राष्ट्र से प्रेम करने तथा देश वासियों की सेवा करने की प्रेरणा मिली।श्रीमती उमा कंवर महात्मा गांधी की जीवनी से विशेष रूप से प्रभावित हुईं जिन्होंने देश को आजाद करवाने के लिये अपनी अच्छी खासी बैरिस्ट्री का त्याग कर दिया तथा जीवन के सारे सुख त्यागकर देश हित जेलों में रहना स्वीकार किया। गांधीजी ने निर्धनों, पिछड़ों और समाज के सबसे अंतिम छोर पर बैठे व्यक्तियों के उत्थान के लिये जो कार्यक्रम चलाये, उन्होंने भी श्रीमती उमा को विशेष रूप से प्रभावित किया। सादा जीवन और उच्च विचार का दर्शन श्रीमती उमा को इतना भाया कि उन्होंने इस विचार को अपने जीवन का मूल मंत्र बना लिया। महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चलने के संकल्प के साथ श्रीमती उमा अपने आसपास घटित होने वाली विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने लगीं। विकास संस्था के माध्यम से उन्होंने निर्धन विद्यालयी छात्रों को पुस्तकें, पोशाकें तथा सर्दियों में गरम कपड़े बांटने का काम हाथ में लिया। लक्ष्मी उद्योग के मालिक श्री भगवान सिंह परिहार एक उद्योगपति होते हुए भी जिस तरह समाज सेवा में सक्रिय रहते हैं, उन्हें देखकर श्रीमती उमा कंवर को निर्धन बच्चों की सेवा करने की प्रेरणा मिली तथा नवजीवन संस्थान में अबोध बच्चों की मदद करना भी उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। वर्ष 1982 में उमा का विवाह श्री अमरसिंह सोलंकी से हुआ। श्री सोलंकी बैंक में हैडकैशियर के पद पर कार्य करते हैंं। उमा के विवाह के बाद श्वसुर गृह में उनकी सास श्रीमती विद्या कंवर एवं ससुर श्री लालसिंह सोलंकी का निधन हो गया। इस पर श्रीमती उमा ने अपने देवरों एवं नंदों को अपने बच्चों की तरह पाला एवं पढ़ाया तथा उनके विवाह की जिम्मेदारी भी श्रीमती उमा ने अपने पति के सहयोग से बहुत अच्छी तरह से निभाई। पारिवारिक दायितवों के निर्वहन के साथ–साथ जरूरतमंदों को हॉस्पीटल में खाना पहुंचाना, कम्बल बांटना, किसी को सर्दी में ठिठुरते देखकर अपना शॉल उसे दे देना उनकी आदत में सम्मिलित रहा है। सेवा करके उन्हें असीम प्रसन्नता प्राप्त होती है। शांत स्वभाव की उमा कंवर के खुश मिजाज स्वभाव से घर व मौहल्ले में सदैव रौनक बनी रहती है। उनका मानना है कि व्यर्थ की बातों में समय खराब करने के स्थान पर मनुष्य को अपनी ऊर्जा उचित कामों और दूसरों की भलाई में लगानी चाहिये। श्रीमती उमा का अधिकांश समय लवकुश नेत्रहीन विद्यालय में बच्चों की सेवा करने में निकलता है। आप लॉयनेस क्लब के माध्यम से भी समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वर्ष 2008 में वे लॉयनेस क्लब की कोषाध्यक्ष बनीं तथा सूर्यनगरी क्लब की भी शोभा बढ़ाई। सखी सहेली संगठन तथा कांग्रेस में भी वे पूरी तरह सक्रिय हैं। वर्तमान में वे जोधपुर महिला कांगे्रस में वार्ड संख्या चार की उपाध्यक्ष हैं। उनका प्रयास रहता है कि जिस किसी भी संगठन के लिये वे कार्य करें उनके समूह अथवा टीम में एकता बनी रहे। उनका विश्वास है कि सब लोगों की सम्मिलित ऊर्जा एक साथ लगने से कार्य के परिणाम शीघ्र एवं काफी अच्छे प्राप्त होते हैं। औपचारिक शिक्षा भले ही श्रीमती उमा कंवर ने कम प्राप्त की किंतु जीवन जीने की कला कोई उनसे सीखे। वे कुकिंग, रंगोली और मेहंदी कलाओं में इतनी निपुण हैं कि देखने वाले दंग रह जायें। इन कलाओं के कारण उनकी लोकप्रियता का ग्राफ सदैव ऊंचा ही रहता है। आपके विनम्र, स्नेहशील एवं सेवाभावी स्वभाव को ससुराल में तथा हर स्थान पर प्रशंसा प्राप्त हुई। श्रीमती उमा तथा श्री अमरसिंह दम्पत्ति के दो पुत्र तथा एक पुत्री हैं। बड़ा पुत्र हेमंत एच. बी. कम्पनी में कार्यरत है। पुत्री ममता स्तातक (कला) की विद्यार्थी है तथा छोटा पुत्र देवेन्द्र अभी दसवीं कक्षा का विद्यार्थी है।श्रीमती उमा का मानना है कि ‘‘सिम्पल लिविंग और हाई थिंकिंग’’ का विचार आदमी के अपने हिसाब से तय होना चाहिये। उसके लिये कोई कृत्रिम मानदण्ड निर्धारित नहीं किये जा सकते। यदि कृत्रिम रूप से ऐसा किया गया तो उसका परिणाम बाह्य आडम्बर के रूप में प्राप्त होगा। आदमी के मन में पवित्रता का भाव उदित नहीं होगा। उनका यह भी मानना है कि यदि हम अपने आपको हर समय परिवार, समाज तथा देश की खुशहाली और समृद्धि के कार्यों में लगाये रखेंगे तो हम कभी भी नकारात्मकता की ओर नहीं मुड़ेंगे। आम आदमी के जीवन में सरसता बढ़ाने के अवसरों को भी वे हाथ से नहीं जाने देतीं। वे मंदिरों में पूजा, डाण्डिया एवं महोत्सव आदि आयोजनों में भी उत्साह से योगदान देती हैं। आज के इस चमक–दमक भरे संसार में जहाँ लोग रंग रोगन के सहारे सड़ा–गला माल भी ताजा और अच्छा दिखाने की जुगत में रहते हैं, वहीं श्रीमती उमा को झूठ, दिखावे और धोखे से सख्त नफरत है। वे अपने सम्पर्क में आने वाले बच्चों को सदैव यही समझाती हैं कि थोड़ा करो किंतु अच्छा करो। यह तभी संभव है जब मनुष्य का मन सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत पर चलने को तैयार हो।

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