Wednesday, January 27, 2010

कर्मयोगी श्रीमती आशा बोथरा

विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के साथ काम किया है उन्होंने
श्रीमती आशा बोथरा की माताजी स्वर्गीय श्रीमती छगन बहन गोलेच्छा को राजस्थान की प्रथम महिला सरपंच होने का गौरव प्राप्त था। वे नशाबंदी आंदोलन की जुझारू सामाजिक कार्यक थीं। श्रीमती आशा के पिता श्री त्रिलोकचंद गोलेच्छा सुप्रसिद्ध सर्वोदयी चितंक एवं मनीषी हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन गौसेवा एवं खादी के प्रचार में लगाया। ऐसे सुप्रसिद्ध समाजसेवी परिवार में आशा का जन्म 26 सितम्बर 1952 को जोधपुर जिले के खींचन गांव में हुआ। आशा ने प्रसिद्ध गांधी विचारक एवं सर्वोदयी नेता श्री सिद्धराज ढड्ढा के निर्देशन में वर्ष 1955 से 1957 तक खीमेल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 1967 से 1971 तक उन्हेांने श्री विनोबा भावे के मार्गदर्शन में तरुण शांति सेना में सक्रिय छात्रा के रूप में वर्धा, सिमोगा (कर्नाटक), खड़कपुर (पश्चिमी बंगाल), वाराणासी (उत्तर प्रदेश) एवं जोधपुर में आयोजित विभिन्न रचनात्मक शिविरों में भागीदारी निभाई। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से बी. ए. तथा एम. ए. (समाजशास्त्र) की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशियल वर्क मुम्बई से एम. एस. डब्लू. तथा लखनऊ से प्राकृतिक चिकित्सा में डिप्लोमा किया। उन्होंने बाल शिक्षा समिति राजलदेसर से बाल शिक्षा में डिप्लोमा प्राप्त किया। आशा के पति श्री नगेन्द्र बोथरा भी बहु पठित व्यक्तित्व के धनी हैं। उन्होंने भी विवाह के बाद भी श्रीमती आशा के साथ समाज सेवा के काम में सहर्ष सहभागिता निभाई।

श्रीमती आशा ने मध्यप्रदेश के चम्बल के बीहड़ों में डॉ. एस. एन. सुब्बाराव तथा श्री नारायण भाई देसाई के नेतृत्व में आयोजित शांति शिविरों में भाग लिया तथा श्री जयप्रकाश नारायण के समक्ष दस्युओं द्वारा किये गये आत्मसमर्पण अभियान में श्रीमती आशा ने सामाजिक कार्यकत्र्ता के रूप में काम किया। जब आत्मसमर्पण के पश्चात् दस्युराज तहसीलदारसिंह, लक्ष्मणसिंह आदि ने जोधपुर की यात्रा की तो श्रीमती आशा ने विभिन्न भेंटवार्ताओं एवं गोष्ठियों के आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाई। वर्ष 1975 में वे प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के दौरान श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में की गयी सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की सक्रिय सदस्य रहीं। श्रीमती आशा ने पश्चिमी बंगाल के कोलाघाट एवं मेदिनापुर जिलों के ग्रामीण अंचल में महिलाओं द्वारा की जा रही आत्महत्याओं के सम्बन्ध में आक्स फॉम नामक संस्था द्वारा आयोजित सामाजिक कानूनी उपचार में सक्रिय सहभागिता निभाई तथा आत्महत्याओं के कारणों एवं निदान पर शोध कार्य किया। श्री जयप्रकाश नारायण ने नक्सलवादियों को प्रेम, सत्य और अहिंसा के मार्ग पर लाने के लिये एक योजना बनायी। इस योजना के अंतर्गत श्रीमती आशा बोथरा, शुभमूर्ति, श्री रमण, उर्मिला मराठे के दलों ने बिहार के पूर्णिया जिले में युवा संघर्ष वाहिनी के सौजन्य से प्रेरणा शिविरों का आयोजन करके नक्सलपंथियों को शांति व अहिंसा के मार्ग का दर्शन दिया।

श्रीमती आशा ने वर्ष 1977–78 के दौरान श्री जयप्रकाश नारायण के सानिध्य में पटना में रहकर सम्पूर्ण क्रांति अभियान में ग्रामीण अंचल में सघन जनसम्पर्क अभियान चलाया तथा विभिन्न जन समस्याओं के समाधान के लिये कार्य किया। बिहार के चम्पारन जिले में चीनी मिलों के श्रमिकों की हड़ताल के दौरान सर्वोदयी नेता श्री इंदुभाई की मांग पर श्री जयप्रकाश नारायण ने आशाजी को एक समाज वैज्ञानिक के रूप में विवाद का शांति पूर्ण समाधान करने के लिये भेजा। 1988 में पुन: जोधपुर लौटकर वे मीरा संस्थान की सचिव बनीं तथा महिला एवं बाल विकास हित विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों में सक्रिय हुईं।

1985 से अब तक उनका राजस्थान में नशाबंदी आंदोलन, सम्पूर्ण साक्षरता अभियान, अकाल पीडि़ताें के पुनर्वास एवं सहायता कार्यक्रम, महिला के उत्पीड़न एवं शोषण के विरुद्ध जन जागरण अभियान, जीव दया से सम्बन्धित विविध गतिविधियों के आयोजन, धार्मिक सद्भावना तथा कौमी एकता के कार्यक्रमों द्वारा शांति का वातावरण बनाने में सक्रिय योगदान रहा है। जोधपुर में मीरा संस्थान के साथ–साथ उनका देशव्यापी कई प्रतिष्ठित संस्थााअें से सीधा जुड़ाव रहा है। वर्ष 1993 से 99 तक वे राष्ट्रीय शासकीय परिषद, गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित गांधी मार्ग के सम्पादक मण्डल की सदस्या रहीं। वर्ष 2003 से 2005 तक वे बालनिकेतन शिक्षण संस्थान जोधपुर की सचिव रहीं। सुचेता कृपलानी शिक्षा निकेतन माणकलाव की स्थापना के शुरुआती दिनों में उन्होंने इस संस्था को विशेष योगदान दिया।

वर्तमान में वे कुरजां संरक्षण एवं संवद्र्धन संस्थान खींचन की अध्यक्ष हैं तथा श्रमिक विद्यापीठ रेजीडेंसी रोड जोधपुर से भी सम्बद्ध हैं। वे राजस्थान राज्य स्काउट गाइड संघ जोधपुर, नवज्योति मनोविकास केन्द्र जोधपुर, मरुधर गौसेवा समिति जोधपुर, जैसलमेर जिला खादी परिषद, श्रीलादूराम अगरचंद गोलेच्छा महाविद्यालय खींचन तथा मरुविज्ञान संस्थान आदि संस्थाओं की कार्यकारिणी सदस्य हैं। इनके अतिरिक्त वे शांति मंदिर बीठड़ी की सदस्य, राजस्थान गौ सेवा संघ कन्हैया गौशाला जोधपुर की सलाहकार समिति सदस्य, जिला साक्षरता समिति जोधपुर की कोरग्रुप मेम्बर, जिला महिला विकास अभिकरण जोधपुर की शासकीय परिषद की सदस्य, जिला पारिवारिक न्यायालय जोधपुर की सलाहकार परिषद की सदस्य हैं। जोधपुर जिला स्तर पर वे जिला महिला सहायता समिति, जिला महिला एवं बाल विकास की प्रबंधन समिति, जिला स्वास्थ्य समिति कामकाजी महिलाओं के यौन शोषण पर कार्यवाही समिति आदि समितियों की सदस्य हैं। श्रीमती आशा द्वारा रचित बाल कविताओं एवं गीतों का संग्रह ‘‘शिशु सौरभ’’ तथा सामाजिक कार्यकत्र्ताओं के लिये लिखी गयी ‘‘मंजिल की ओर’’ प्रकाशित हुई हैं। वे विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सम सामयिक विषयों पर भी लेखन करती रहती हैं। उन्होंने परम्परागत राजस्थानी लोक गीतों में भी स्वर संयोजन किया है। विनोबा भावे और जय प्रकाश नारायण जैसे चिंतकों के साथ काम करने के दौरान हुए अनुभवों का स्मरण करते हुए वे कहती हैं कि प्रेम और शांति से ही आध्यात्मिक साधना हो सकती है। यह आदमी के चिंतन से आदमी के व्यवहार में आना चाहिये। उनका मानना है कि पति–पत्नी एक दूसरे के मजबूत साथी बनें, तभी महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। स्त्री पुरुष सहजीवन को सहनागरिकत्व द्वारा ही जेंडर समानता को बल दिया जा सकता है।

सम्पर्क– मीरा संस्थान, बक्तावरमलजी का बाग, जोधपुर
दूरभाष– 0291 2434166

2 comments:

  1. राजस्थानीयों पर चिट्ठा देख प्रसन्नता हो रही है. आपको साधुवाद व शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  2. इस ब्लॉग को उन राजस्थानियों को समर्पित किया गया है जो दिन रात मानवता की सेवा में जुटे हुए हैं। आपने पसंद किया। आभार। – डॉ. मोहनलाल गुप्ता

    ReplyDelete