Wednesday, January 20, 2010

कर्मयोगी श्री आनंद कुमार सिनावडि़या

श्रद्धालुओं को तीर्थ यात्राएं करवाने का पुण्य कमाया है उन्होंने

श्री आनंदकुमार सिनावडि़या 78 साल की उम्र में भी उतने ही सक्रिय हैं जितना कि कोई व्यक्ति अपनी युवावस्था में हो सकता है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी, कलाकार, फिल्म निर्माता, राजनेता और सफल व्यवसायी रहे हैं। धुन के धनी आनंद कुमार ने सफलता के लिये ओछे हथकण्डों को नहीं अपनाया। अपना रास्ता स्वयं चुना और समाज को श्रेष्ठतम अवदान देने का प्रयास किया।श्री आनंद कुमार सिनावडि़या का जन्म 3 मार्च 1930 को जोधपुर में हुआ। उन्हाेंने मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की तथा मात्र 16 वर्ष की आयु में वर्ष 1946 से वे पिता श्री गोरधन सिनवाडि़या के साथ ठेकेदारी करने लगे। आजादी से पहले उन्हें सिंध क्षेत्र की यात्रा का भी अवसर मिला जो आजादी के बाद पाकिस्तान में चला गया। इस कार्य में आय तो अच्छी थी किंतु एक दिन उनका जी इस कार्य से उचाट हो गया। मामला था रिश्वत देने का। आनंद ने रिश्वत देकर अपना काम करवाने के स्थान पर काम छोड़ देना ही श्रेयस्कर समझा।


वर्ष 1957 से आनंद ने हिन्दू श्रद्धालुओं को तीर्थ स्थलों के दर्शन करवाने का व्यवसाय अपना लिया। इस व्यवसाय के कई लाभ थे। आजीविका के साथ धार्मिक स्थलों की यात्रा, तीर्थ यात्रियों की सेवा और देशाटन का आनंद, सभी कुछ इस व्यवसाय से जुड़ा हुआ था। उन्होंने हिन्दू श्रद्धालुओं को चारों धाम– बद्रीनाथ, द्वारिकापुरी, जगन्नाथ पुरी तथा रामेश्वरम्, सप्तपुरी– कांची, काशी, माया (हरिद्वार), मथुरा, अयोध्या, अवंतिका (उज्जैन) तथा द्वादश ज्योतिर्लिंग, हैदराबाद से नेपाल तक की यात्राएं करवाईं तथा कई बार भारत भ्रमण के कार्यक्रम भी आयोजित किये। इसी बीच 1963 में उन्होंने नगर परिषद जोधपुर के वार्ड नम्बर 39 से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा तथा अपनी लोकप्रियता के बल पर विजयी रहे। 1965 में श्री आनंद ने अपने पिता के साथ मिलकर रातानाडा जोधपुर में श्रीयादे माता का मंदिर बनवाया। मंदिर में देवी विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा से पहले उन्होंने अपने माता–पिता के साथ उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा की।


सन 1945 में जब स्टेडियम मैदान में प्रदर्शनी लगी तो आनंद 15 साल के किशोर ही थे। इस प्रदर्शनी में उन्होंने बढ़–चढ़ कर हिस्सा लिया और स्टेडियम मैदान में वे महाराजा उम्मेदसिंह के साथ रहे। 1950 में उन्हें जोधपुर नरेश हनवंतसिंह से भी संक्षिप्त भेंट करने का अवसर मिला।


1966 एवं 1969 में आनंदकुमार ने राजस्थानी फिल्म निर्माण स्मारिका का प्रकाशन एवं संपादन किया। इससे उनकी प्रसिद्धि बुलंदियां छूने लगी। आनंदकुमार राजनीति में भी सक्रिय रहे। वे स्वतंत्र पार्टी के जिला अध्यक्ष भी बनाये गये। जब 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ तो आनंदकुमार उसके भी जिला संयुक्त सचिव बनाये गये।


भारत के पहले पहले आम चुनावों में जोधपुर नरेश हनवंतसिंह ने अपनी पूर्व रियासत मारवाड़ के निवासियों के नाम एक संदेश दिया था– ‘‘म्हैं थांसू दूर नहीं।’’ इस नारे के बल पर महाराजा उन आम चुनावों में लोक सभा एवं विधानसभा दोनों ही सीटों के लिये चुनाव जीत गये थे। इतना ही नहीं महाराजा द्वारा समर्थित 35 में से 31 प्रत्याशियों की चुनावी नैया पार लग गयी थी। दुर्भाग्य से चुनाव परिणाम घोषित होने से पूर्व ही महाराजा का एक वायुयान दुर्घटना में निधन हो गया। माना जाता है कि यदि महाराजा का निधन नहीं होता तो वे प्रदेश में बनने वाली पहली निर्वाचित सरकार में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार होते।

जब 1971 के आम चुनाव हुए तो स्वर्गीय महाराजा हनवंतसिंह की पत्नी कृष्णाकुमारी ने चुनाव लड़ने का मन बनाया। इस पर आनंद कुमार ने दैनिक जलते दीप समाचार पत्र में पूरे एक पृष्ठ में अपना वक्तव्य प्रकाशित करवाया। इसे पढ़कर राजदादी बदनकंवर ने आनंदकुमार को राईकाबाग पैलेस बुलवाया तथा राजमाता कृष्णाकुमारी के चुनाव लड़ने के बारे में बातचीत की। राजदादी ने शंका भी व्यक्त की कि राजमाता तो पर्दे में रहती हैं। तब आनंदकुमार ने जवाब दिया कि संतान और माता के बीच कोई परदा नहीं होता है। इस पर राजदादी ने आनंदकुमार को राजमाता कृष्णा कुमारी तथा उनके पुत्र महाराजा गजसिंह से भी मिलवाया।

इस प्रकार जोधपुर के राजपरिवार से उनका सम्पर्क बन गया जो आगे भी जारी रहा।
वर्तमान में आनंदकुमार राजस्थान कला संगम संस्थान के अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय पुरबिया प्रजापति समाज संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई तथा वेस्टर्न इंडिया फिल्म प्रोड्यसर्स एसोसियेशन के सदस्य हैं तथा राजस्थानी फिल्म केसरिया बालम के निर्माण कार्य में व्यस्त हैं।

सम्पर्क – 51 बी, नृसिंह कॉलोनी, रातानाडा, जोधपुर।
दूरभाष –0291 2511919, 94604 25069

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