Thursday, January 14, 2010

कर्मयोगी डॉ. अंजु सुथार


बचपन से ही प्रतिभाशाली रही हैं वे

अंजुम तखल्लुस से पहचानी जाने वाली डॉ। अंजु सुथार का जन्म 1 फरवरी 1974 को नागौर जिले के जसवंतगढ़ गांव में हुआ। पिता श्री बजरंगलाल जांगिड़ के राजस्थान सरकार के जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में अधिकारी होने तथा उनका लगातार स्थानांतरण होते रहने के कारण डॉ. अंजु की विद्यालयी शिक्षा सुजानगढ़, डीडवाना, सरदार शहर, नावां, सांभरझील आदि स्थानों पर हुई। स्नातक एवं स्नातकोत्तर शिक्षा सोना देवी सेठिया कन्या महाविद्यालय सुजानगढ़ में हुई। प्रतिभाओं को अवसर की खोज नहीं होती, अपितु अवसर मिलते ही दृढ़ता के साथ वे स्वयं को प्रमाणित करती हैं। अंजु की नृत्य, गायन, खेलकूद में रुचि विद्यालयी शिक्षा के साथ–साथ उजागर होती चली गयी।

सन् 1987 में आठवीं कक्षा में अध्ययनरत अंजु ने जिला स्तरीय टेबल टेनिस में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसी समय स्काउट गाइड में इनकी सक्रियता ने भविष्य में किये जाने समाजसेवा कार्यों का आधार भी चिह्नित कर दिया। वर्ष 1991 में सीनियर सैकेण्डरी परीक्षा के कला वर्ग में उन्होंने राजस्थान मैरिट में साठवां स्थान प्राप्त किया। इसके लिये उन्हें भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने छात्रवृत्ति प्रदान की। इसी परीक्षा में अंजु ने अपने विद्यालय में अंग्रेजी विषय में सर्वोच्च अंक भी प्राप्त किये।

महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय अजमेर द्वारा आयोजित वर्ष 1994 की स्नातक उपाधि परीक्षा में इन्होंने 26वां स्थान तथा वर्ष 1996 में इतिहास विषय से स्नातकोत्तर उपाधि परीक्षा में सातवां स्थान प्राप्त किया। स्नातक परीक्षा में अच्छे प्रदर्शन के लिये इन्हें भारत सरकार ने छात्रवृत्ति दी। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सुजानगढ़ तथा शिक्षा एवं संस्कृति प्रचार केन्द्र सुजानगढ़ ने इन्हें नगर प्रतिभा के रूप में सम्मानित किया। महाविद्यालय जीवन में उनका प्रखर वक्ता के रूप में भी विकास हुआ। ‘‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’’ ये शब्द महाविद्यालय प्रशासन ने इनकी राज्य स्तरीय वाद विवाद प्रतियोगिता में प्रथम जीत पर व्यक्त किये। भाषण और वाद विवाद प्रतियोगिता में विजय और पुरस्कारों की श्रृंखला अनवरत जारी रही। अतएव महाविद्यालय द्वारा इन्हें सर्वोत्तम वक्ता के रूप में पुरस्कृत किया गया। वक्ता होने के साथ–साथ सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी की राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भी इन्होंने पुरस्कार प्राप्त किये। नृत्य एवं गायन के बालपन में पड़े बीज अब पल्लवित होने लगे थे। संगीत विषय न होने के उपरांत भी वे नृत्य तथा गायन में महाविद्यालय स्तर पर प्रतिवर्ष पुरस्कार प्राप्त करती रहीं। वहीं इनकी खेल प्रतिभा भी अपने रंग प्रदर्शित कर रही थी। एथलेटिक्स की हर विधा में इन्होंने सफलता के साथ हाथ आजमाया। वहीं जब भी अवसर मिला बैडमिण्टन, वॉलीबॉल तथा टेबिल टेनिस में भी अपना हुनर प्रदर्शित किया। नेतृत्व क्षमता और हेलाएं में सघन रुचि ने सन् 1993 के छात्रसंघ चुनावों में इन्हें खेलमंत्री बना दिया। महाविद्यालय के समय में ही चित्रकला और कविता, कहानी लेखन में भी इनकी दक्षता परिलक्षित हुई। राष्ट्रीय सेवा योजना तथा योजना मंच के कर्मठ कार्यकत्र्ता के रूप में इनकी सेवाएं विशेष सरहानीय रहीं। उपयु‍र्क्त समस्त विशेषताओं और गुणों को परख कर ही सन् 1994 में इन्हें बेस्ट स्टूडेण्ट ओफ कॉलेज का खिताब मिला।

वर्ष 1997 में राज्य स्तरीय व्याख्याता पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वर्ष 2003 में वे राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बाड़मेर में इतिहास की व्याख्याता नियुक्त हुईं। वर्ष 2004 में उन्होंने डॉक्टरेट उपाधि अर्जित की। वर्तमान में वे अध्ययन, शिक्षण, चिंतन तथा विश्लेषण के क्षेत्र में सक्रिय हैं जहाँ वे कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, कार्यशाला व गोष्ठियों में भागीदारी निभा रही हैं। साथ ही शोधपत्रों और आलेखों के माध्यम से भी अपनी बात सामने रख रही हैं। वे कई अकादमिक संस्थाओं की सदस्य होने के साथ–साथ इन्फोसिस कम्पनी के व्यक्तित्व विकास कौशल कार्यक्रम की प्रशिक्षित सदस्या भी हैं जिसका उपयोग वे महाविद्यालय के छात्र–छात्राओं को प्रशिक्षित करने में करती हैं। हाल ही में उनकी पुस्तक बीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीय राजनीति के निर्माता भी प्रकाशित हुई है। उन्होंने ‘‘गांधीवादी अहिंसक निवारण संघर्ष’’ तथा आपदा प्रबंधन में प्रमाणपत्र एवं डिप्लोमा प्राप्त किया है।

डॉ। अंजु के लिये समाज सेवा का क्षेत्र प्रमुख कार्यक्षेत्र है। समाज के नारी मुक्ति के घिसे–पिटे नारों को उन्होंने नवीन दिशा देने का प्रण लिया और प्रथम आघात स्वयं के परम्परागत विवाह में पर्दा प्रथा के विरुद्ध आवाज बुलंद करके किया। अंजु अन्तर्राष्ट्रीय लॉयन्स क्लब से भी जुड़ीं जिसके निर्देशन में पर्यावरण संरक्षण, साक्षरता, महिला सशक्तिकरण, स्कूलों को गोद लेने की योजना, विद्यालयों में गणवेश वितरण, रक्त जांच शिविर, नेत्र जांच शिविर, एड्स के प्रति जागरूकता, स्वास्थ्य जागरूकता, साम्प्रदायिक सद्भाव, पल्स पोलियो कार्यक्रमों में भागीदारी, वाटिकाओं का सृजन, वृक्षारोपण इत्यादि कार्यक्रमों में सृजनशील कार्यकत्र्ता के रूप में कार्य कर रही हैं। वर्ष 2006 में बाड़मेर जिले में आयी विनाशकारी बाढ़ के समय उन्हाेंने राहत सामग्री जुटाने में विशेष योगदान दिया। केसरीसिंह बारहठ की इस उक्ति को कि जब भी मौका मिले प्रत्येक व्यक्ति को अपने समाज के लिये अवश्य समय निकालना चाहिये, डॉ. अंजु सुथार कई अर्थों में उचित मानती हैं। इसीलिये वे बाड़मेर में जांगिड़ ब्राण समाज की महिलाओं में विकासात्मक दक्षता विकसित करने का प्रयास राष्ट्रीय नेतृत्व के रूप में कर रही हैं। कविता तथा गजल लेखन इनके प्रमुख व्यसन हैं।

5 comments:

  1. आभार इस परिचय के लिए.

    कविता तथा गजल लेखन इनके प्रमुख व्यसन हैं।...व्यसन???

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  2. महोदय, त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिये धन्यवाद किंतु एक निवेदन है कि हमने व्यसन शब्द का ही तो प्रयोग किया है न कि दर्ुव्यसन शब्द का। जब बात को जोर देकर कहना हो या अंलकारपूर्ण शब्दावली में कहना हो तो व्यसन शब्द का प्रयोग करने की अनुमति मिलनी चाहिये। यदि फिर भी आप अनुमति नहीं देंगे तो हम इस शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे। ब्लॉग पर आकर उत्साह बढ़ाने का धन्यवाद। mohanlal gupta

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  3. thanx,for introduction about emerging dignity of suthar samaj.really ,life is not stopping struggle of inner hidden values.circumstances pave the way ,where to go . i hope yr introduction will inspire many coming aspirants.

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  4. anju ji,hame naaj hai aap par!-sawai ram suthar,khinya,jaisalmer

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  5. ham to god se yahi duaa karenge ki aapke jesi or devi is suthar samaj me jagrut ho jo apane samaj ka nam rosan ka sake DILIP SUTHAR KHINYA JAISALMER

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