Tuesday, January 12, 2010

प्रस्तावना

समाज में हमारी उपादेयता इस बात से नहीं आंकी जा सकती कि हम कितना जिये या कितनी सम्पन्नता और कितने आराम के साथ जिये। न इस बात से आंकी जा सकती है कि हमने कितना धनार्जन किया, कितनी शक्ति एकत्रित की और कितना ज्ञान बटोरा। ये समस्त उपलब्धियाँ सामयिक हैं, मनुष्य के पुरुषार्थ अथवा भाग्य से प्रकट होती हैं और देहावसान के साथ ही विलुप्त हो जाती हैं। समाज में हमारी उपादेयता इस बात से आंकी जाती है कि हमने अपनी ऊर्जा, शक्ति, ज्ञान एवं संसाधनों का उपयोग व्यक्ति, समाज, राष्ट्र अथवा प्राणी मात्र के कल्याण के हित में किस सीमा तक जाकर किया!

हमारी सामाजिक उपादेयता को नापने की कोई इकाई तो नहीं बनी किंतु हर व्यक्ति का आकलन तो होता ही है। यह आकलन दो स्तरों पर होता है। पहला आकलन वैयक्तिक स्तर पर होता है जिसमें हमारा अपना मन एक तुला की भांति कार्य करता है। यदि हम विवेकशील हैं और आत्ममुग्ध नहीं हैं, तो इस तुला का परीक्षण सर्वश्रेष्ठ परिणाम देता है। इस तुला द्वारा किये गये परीक्षण में यदि हम सफल होते हैं तो हमें अवर्चनीय आत्मतोष की प्राप्ति होती है और हमारी आत्मा का प्रकाश हमारे पूरे जीवन को दिव्य प्रकाश से आलोकित कर देता है। हमें आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। हम और अधिक संकल्पबध्द होकर अपनी सामाजिक उपादेयता को सिध्द करने में जुट जाते हैं।

दूसरा आकलन सामाजिक स्तर पर होता है। यह तुला अत्यंत विशाल होती है। इसका परीक्षण भी जटिल होता है तथा अक्सर मनुष्य इस तुला के दोलन में अपना संतुलन खो बैठता है। आदमी कितना ही अच्छा क्यों न कर ले किंतु उसे सामाजिक आलोचनाओं की झंझा झेलनी ही पड़ती है जिससे मनुष्य विचलित हो जाता है और उसकी गति कुंद होने लगती है। बहुत कम लोग इस झंझा को झेलकर आगे बढ़ पाते हैं। कर्मयोगी राजस्थानी ऐसे व्यक्तियों की कहानियाँ हैं जो अपने मन में विराट भाव धारण करके, सामाजिक आलोचनाओं की अनदेखी करके, अपनी ऊर्जा, शक्ति, ज्ञान एवं संसाधनों का उपयोग व्यक्ति, समाज, राष्ट्र अथवा प्राणी मात्र के कल्याण के लिये समर्पित करके, समय की वेगवती धारा को बदलने में सक्षम सिध्द हुए हैं।
हमने कर्मयोगी राजस्थानी शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित की जिसमें ये कहानियाँ समाहित थीं। इन कहानियों को हम इस ब्लॉग के माध्यम से अपने पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं।

राजस्थान की धरती पर एक से एक अनूठे कर्मयोगी की कमी नहीं। उन सबको पुस्तक में स्थान दे पाना संभव नहीं था। जितना भी प्रयास हमसे हो सका, आपके समक्ष है। जिन महानुभावों ने अपना जीवन वृत्तांत हमें उपलब्ध करवाया, हम उनके आभारी हैं क्योंकि इनमें से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे यशगान की किंचित भी आवश्यकता या अभिलाशा रही हो। हमारे अनुरोध पर उन्होंने इसलिये अपना जीवन वृत्तांत हमें उपलब्ध करवाना उचित समझा कि इन्हें पढ़कर और लोग भी समाज सेवा का महत्व समझें और इस कार्य के लिये आगे आयें ताकि यह परम्परा निरंतर चलती रहे।

- डॉ. मोहनलाल गुप्ता
– श्रीमती मधुबाला गुप्ता

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